सावन था या प्यार तुम्हारा
सावन था या प्यार तुम्हारा
आज शाम जब बरसा सावन
भीगा अपना तन-मन सारा।
भ्रान्ति लिए बैठा हूँ अब तक
सावन था या प्यार तुम्हारा।
कान्हा ने राधा से पूछा
तुम मुझको सच-सच बतलाना।
भली लगी कब तुम्हें बांसुरी
और अधर तक उसका आना।
भीगे हम भी भीगे तुम भी
शायद था सौभाग्य हमारा।
कह देने से कम हो जाता
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nbsp;दुविधा में क्यों जीते-मरते।
तुम्हीं कहो उन सुखद पलों का
मूल्यांकन हम कैसे करते।
मनः पटल पर स्पर्शों का
बार-बार ही चित्र उतारा।
क्या जाने फिर कब बरसेगा
दूर हुए तो मन तरसेगा।
दिल की बात कहेंगे किससे
दिल का क्या यह तो धड़केगा।
जितना जो कुछ मिला भाग्य से
हमने तुमने है स्वीकारा।