जाना जोगी दे नाल
जाना जोगी दे नाल
बंद रास्तों पर जाकर
क्या हुआ है हासिल
अंधेरों के पार जाकर ही
मिलती है असल रौशनी
जो वाद्-सम्वाद् से करते थे परहेज
वो आजकल कह रहे है
कोई मिलता नहीं क्यूँ है
ऐसी भी क्या दुश्वारियां है
जो अपनो की खतायें
कोई भूलता क्यूँ नहीं है
न मिलो गर मिलने मे बुराई है
पर फोन नाम की चीज़
इंसान ने बात करने के लिए बनाई है
आज डिजिटल इंडिया तरक्की कर रहा है
लोग भूख से बीमारी से मर रहे है
मेरा देश धर्म और जातियों पर झगड़ रहा है
यह देश कहाँ से आया है
या हम देश मे कहाँ से रह गए
मुंशी प्रेमचन्द कबीर सभी सयाने
खुसरो कालिदास इस बेगैरती से महरूम रह गए
उनकी दुनियां जैसी भी थी मस्त ही होगी
जो राह नहीं देखी वो बढ़िया ही होगी
जिस ठोर जाना नहीं उसकी बॉट क्या जोहनी
एक चनाब का दरिया था जहाँ
मिलते थे महिबाल् और सोहनी
प्रीत तब भी ऊपर थी हर लिहाज से
बात दिल की तब भी थी हर लिहाज से
कोई समझ पाया था कोई नासमझ रह गया
आज से बरसो पहले बुल्लेशाह
हम सबसे यह कह गया
जाना जोगी दे नाल जाना जोगी दे नाल।

