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Gyanendra Mohan

Abstract

4.1  

Gyanendra Mohan

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रक्षाबंधन

रक्षाबंधन

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बहन, तेरी शादी होने से पहले तक

रक्षाबंधन का त्योहार त्योहार था। 

दो महीने पहले से सोचने लगता था कि

तुझे क्या गिफ्ट दूं रक्षाबंधन पर। 


जब तू चार साल की थी तो 

तुझे रुपए और पैसे का अंतर नहीं पता था। 

मैं 2 रुपए देता था तो नहीं लेती थी

कहती थी पैसे दो

और चवन्नी हाथ में थमा देने पर ही शांत होती थी। 


तू बड़ी होती गई

लेकिन तेरे समझदार होने के बाद भी

तेरी शादी से पहले तक

उपहार में 

भले ही मैंने 500 रुपए का नोट दिया हो 

लेकिन एक सिक्का जरूर देता रहा 

ताकि 

रक्षाबंधन के बहाने

तुझे तेरा बचपन हमेशा याद रहे। 

तेरी शादी हुई

दूल्हे राजा के साथ 

बहुत प्यार से विदा कर दिया तुझे।

फिर दूर देश में बस जाने के बाद

वो रक्षाबंधन दोबारा नहीं आया।


ेरे बच्चे बड़े हो गए

उनकी शादी भी हो गई

मेरे भी बच्चे बड़े हो गए

उनकी भी शादी हो गई


इस दौरान मिले भी

बतियाए भी

तेरे बच्चों की शादी में सपत्नीक शामिल हुआ

मेरे बच्चों की शादी में तू भी पति के साथ हाज़िर हुई


अभी भी

हर रक्षाबंधन पर 

दूर रहकर भी 

मोबाइल से एक दूसरे की आवाज़ सुनकर

बातें करके मन भर आता है

भाई-बहन का प्यार आज भी वैसा ही है


इतनी दूरियों और

उम्र के 60 साल के आसपास पहुंचकर भी 

हम दोनों के बीच प्यार में कोई कमी नहीं आई

लेकिन 

मेरी प्यारी बहन 

रक्षाबंधन पर

तुझे सिक्का देने की ख्वाहिश 

अधूरी ही रह जाती है। 


तू आज भी मुझे 8 साल की गुड़िया ही लगती है

जब तेरे बाल पकड़कर टिपिया दिया करता था

और तू कहती थी - कुत्ते छोड़ दे।



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