पर्यावरण गीत
पर्यावरण गीत
आँकड़ों के खेल से बाहर निकल कर के,
आइए कुछ काम करते हैं हक़ीक़त में।
फाइलों में लग रहे हैं पेड़ बरसों से,
और फोटो छप रहा अखबार में चोखा।
चाहते हैं मेघ बरसे सींच दें धरती,
अब नहीं संभव, प्रकृति के साथ है धोखा।
जो लगाए पेड़ उनकी हो सुरक्षा भी,
दुर्दशा होने न दें अब किसी क़ीमत में।
फूल, पत्ती, नारियल की भेंट देकर हम,
चाहते आशीष वृक्षों और नदियों से।
कारखानों का ज़हर उनको पिला कर के,
कर उन्हें दूषित किया है पाप सदियों से।
छेड़ कर अभियान नदियों की सफाई हो,
काम ये आतीं हमारी हर ज़रुरत में।
पर्वतों को काटकर निर्माण भवनों का,
है कहाँ तक उचित इस पर सोचना होगा।
वायु प्राणों को हमारे दे रही है जो,
प्रकृति का दोहन हमें मिल रोकना होगा।
प्रकृति का शोषण बहुत भारी पड़ेगा अब,
दे रही चेतावनी वो कई सूरत में।