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Yuvraj Gupta

Drama

5.0  

Yuvraj Gupta

Drama

साड़ी

साड़ी

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साड़ी क्यों नहीं पहनती तुम ?

पहना करो अच्छी लगती हो ...

सूखे पत्तों के बीच,

गुलाब की पंखुड़ी लगती हो।


क्या पता है तुम्हें ...?

नजरें बहुत सी,

तुम पर यूं ही लगी रहती हैं

मगर जब कभी होती हो साड़ी में तुम

उन नजरों में प्यार के साथ

इज्जत बन चमकती हो।


देखने को नजारे और भी हैं

दिल बहलाने को फसाने और भी हैं

मगर छूकर नजरों को

घर बनाकर बस जाये जो दिल में

दिल ऐसी सूरतें ढूंढता है

साड़ी के पल्लू को संभालती

मेरे ख्वाबों की बेचैनी लगती हो।


साड़ी क्यों नहीं पहनती तुम ?

पहना करो अच्छी लगती हो ...


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