।। राजनीति ।।
।। राजनीति ।।
राजनीति, हर युग में नए अर्थ हैं इस शब्द के,
हर काल, हर युग, या फिर प्रकृति के प्रारब्ध से,
त्रेता में स्व आचरण, ही था अर्थ राजनीति का,
प्रभु राम ने निभाया, हर प्रण रघुकुल रीति का,
द्वापर ने सिखाया, कि स्व कर्म ही राजनीति है,
कर्मयोगी कृष्ण के शब्दों में, आज भी गीता जीती है,
राजनीति ही तो थी, जो चंद्रगुप्त ने नंद को मारा,
विदुर चाणक्य से रहे तो, अजेय सिकंदर हारा ।।
वो भी राजनीति ही तो थी, जो बंट गयी भारत माता,
निहित स्वार्थ की खातिर, जो पूरे तो देश को था बांटा।।
आज की राजनीति में, न तो राज है न कोई नीति है,
अब तो बस निज स्वार्थ और चापलूसी की परंपरा जीती है,
अब राजनीति में, न आदर्श है न मूल्यों का समावेश,
बस मुखौटों से भर गया है, ये मेरा प्यारा भारत देश ।।