प्रत्येक सुबह
प्रत्येक सुबह
जबसे बुद्धिजीवी बना हूँ
प्रत्येक सुबह
जनतंत्र का चौथा स्तम्भ
चंद सिक्कों के बदले
कमरे में विखेर जाता है
ढेर सारी खबरें :
बलिदान और बलात्कार की खबरें
जन्म और मृत्यु की खबरें
दंगा फसाद की खबरें
ज्ञान विज्ञान की खबरें
बाढ़ और अकाल की खबरे
देश - विदेश की खबरें
सच्ची - झूठी, कच्ची पक्की खबरें
तुमको छोड़कर
सबकी छप जाती हैं खबरें
सोचता हूँ
कहाँ से? क्यों ? कैसे ?
उग आती हैं
प्रत्येक सुबह
खबरों की जबरदस्त फसल
कौन और क्यों?
इन फसलों को काटकर
हमतक पहुँचाता है
इसके पीछे मुझे
चतुर्मुखी शेर का हाथ नजर आता है
जिसके पैरों तले रौंदा जा रहा है
शांति,धर्म और न्याय का प्रतीक
अशोकचक्र
अतः खोजता हूँ
प्रत्येक सुबह
मुक्तिबोध का
सुदर्शनचक्र
प्रयास जारी है ।।