प्रकृति का सच
प्रकृति का सच
इंसान क्यों इतना मृत्यु से डरता है ?
मृत्यु तो जीवन का अंतिम सत्य है
फिर भी अपने सलामती के लिए ,
धार्मिक गुलामी को स्वीकारता है
इंसान से इंसान क्यों डरता है ?
पाखंडीयों के जाल में देखो कैसे फंसता है
धर्म, अल्ला ,ईश्वर के नाम पर,
कर्मकांडी पाखंडी इंसान को बेवकूफ बनाता है
पाखंडी नये – नये षड्यंत्र रचाकर,
आम मानव पर अमानवीय अत्याचार करता है
धर्म और भगवान अगर सृष्टि में है,
तो कर्मकांडी पाखंडी को डर क्यों नहीं लगता ?
जो ईश्वर का झूठा ठेकेदार बनकर,
उसी के सामने उसके भक्तों को ठगता
मैं तो सीना ठोक के कहता हूं,
इंसान के अच्छे कर्म ही उसकी है ताकत
ना कही स्वर्ग है, ना कही जन्नत,
ना कहीं पाताल, ना कही नरक,
इंसान कि इंसानियत से वफा,
यही धरती का स्वर्ग है
इंसान का इंसान से प्रेम ही ईश्वर है,
बाकी सब फरेब और बेकार है
निजी लाभ के लिए मानवता से षड्यंत्र,
यही धरती के स्वर्ग पर अधर्म है
ना मांत्रिक का मंत्र, ना तांत्रिक का तंत्र,
ना पंडित का यज्ञ, हवन और व्रत
धार्मिक कर्मकांडीयों के है ये सब षड्यंत्र,
मानव का मानव के साथ छल और कपट
मैं तो सीना ठोक के कहता हूं,
इंसान का इंसानियत से धोका
यही मानवता पर कलंक है,
बाकी सब फरेब और बेकार है
दुनिया के बाईबल, वेद, पुराण , कुरान,
ये सभी तो पाखंडीयों की रचना है
मैं तो सीना ठोक के कहता हूं,
प्रकृति ने इसे लिखा नहीं है
मानव का मानव के प्रति मानवी व्यवहार,
सृष्टि का अंतिम सत्य है
मैं तो सीना ठोक के कहता हूं,
बाकी सब फरेब और बेकार है
ना कोई चमत्कार ,ना कोई दैवी कोप,
ना कोई पुण्य, ना कोई पाप
ना भविष्य, राशि , गुन और किस्मत,
ना कोई मंगल, ना कोई शनि
ना कोई चंद्रग्रहण, ना कोई सूर्यग्रहण,
ये तो षड्यंत्रकारी पाखंडीयों के लुटेरे नाप
मैं तो सीना ठोक के कहता हूं,
मानव का मानव के प्रति अच्छा आचरण
यही है मानव धर्म की असली पहचान,
बाकी सब फरेब और बेकार
किसी मांत्रिक के मंत्र से कैसे हो सकता चमत्कार,
जो खुद ही नहीं कर सकता अपना बेड़ा पार
मैं तो सीना ठोक के कहता हूं,
विज्ञान के सिवाय बाकी सब है कर्मकांडियों कांड