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परिचय इंसा होने का

परिचय इंसा होने का

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चिलचिलाती धूप में, नंगे पाँव

कमर पर बंधा, नन्हा बच्चा।

सिर पर लकड़ी, का गट्ठा

आस यह आज, सबका पेट भरेगा।।


रह किस्मत है उसकी

या है, रोटी की भूख।

हालत उसकी देख, हम लकड़ी लेने

हाँ ना करते, बढ़ाते उसकी भूख।।


मजबूरी में बेच, देती लकड़ी

सस्ता दाम, लगाते हुए।

देखती जब मुन्ने को, भूख

प्यास से, क्रंदन करते हुए।।


आँखों में, अश्रु लिए

कोसती अपनी, किस्मत को।

आदमी तो सब, दिखते यहां

इंसान कब मिलेंगे मुझ को।।


जो समझे दुख दर्द ग़रीबों का

प्रभू के बनाएं, सभी बंदों का।

बुरा होता वक्त, कोई इंसा नहीं

परिचय देगा कब, तू इंसा होने का।।



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