प्रेम एक तपस्या
प्रेम एक तपस्या
माता पार्वती ने की घोर तपस्या
तब जाकर शिव जी को पाया था
सौ वर्षों के विरह के बाद
नारायण, लक्ष्मी का मिलन हो पाया था।।
विरह की अग्नि में जली लक्ष्मी,
पार्वती ने महलों का सुख त्याग दिया
वो प्रेम की तपस्या ही है जिसके आधार पर
इन्होंने अपने प्रेम को प्राप्त किया।।
प्रेम को पाना इतना आसान नहीं
प्रेम सत्य प्रदर्शित करता दर्पण है
कोई शर्त नहीं इसमें ना कोई समझौता
यह तो एक सच्चा समर्पण है।।
प्रेम प्रतीक्षा है, प्रेम परीक्षा है,
प्रेम तपस्या है जिसमें कोई हार जीत नहीं
प्रेम सुलझन है हर समस्या का
प्रेम सृष्टि का आधार, प्रेम बिना जीवन नहीं।।
प्रेम एक मौन तपस्या है, जो मांगा नहीं जाता
प्रेम तो आँखों की भाषा समझता है
निस्वार्थ है प्रेम, कोई जिद नहीं
प्रेम तो हार कर भी सदा जीत जाता है।।
एक बूंद स्वाति को पाने की खातिर
पपीहा रह जाता है बरसों तक प्यासा
उस स्वाति के प्रति पपीहे की प्रेम से सराबोर
है यह एक कठिन तपस्या।।
प्रेम एक यात्रा है, ईश्वर हो या मनुष्य
सभी को इससे गुजरना पड़ता है
प्रेम तपस्या में तप कर अलौकिक होता है प्रेम
कुंदन बन कर निखरता है।।