STORYMIRROR

Awadhesh Uttrakhandi

Tragedy

2  

Awadhesh Uttrakhandi

Tragedy

प्रेम और छल

प्रेम और छल

1 min
328

प्रेम का कर व्यापार

फैल रहा नित ब्यभिचार,

तत्व को जाने बिना ये

दो पल के वासना में

कर रहे कैसा आचार?

प्रेम के उस पथ में

आते विषम बार बार,

प्रेम में त्याग सद्गुणों को

रच रहे प्रपंच, लाद रहे अवगुणों को,

न प्रेम का पात्र है

न प्रेम सुधा पीने वाला है।

यहाँ भीड़ है कामी की

नारी ने तज दी लाज,

मुस्कुरा कर भोग्या नर की

कैसे तृष्णा है जीवन में।

नारीत्व के नहीं मान रे

गिर गया अपनी ही दृष्टि में

मूँड़ मति इंसान रे।

प्रेम पियो बन दिब्य सुधाकर

सभ्य समाज का कर निर्माण

विश्व का कल्याण कर।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy