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Kusum Joshi

Classics

5.0  

Kusum Joshi

Classics

प्रभु ये वरदान दे दो

प्रभु ये वरदान दे दो

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इस धरा में अच्छे - बुरे

सबको तेरे दर्शन हुए,

जो पतित थे धर्म पथ से,

उनको भी तुम मिल गए,


इतिहास में हैं पात्र ऐसे,

जो फिरे थे कर्म से,

उनको भी तूने प्रभु,

विराट रूप दर्शन दिए,


मैंने तो चाहा तुमको केवल,

ना मगर मैं पा सकी,

सहस्त्रों प्रयत्नों पर भी,

ना तुम्हें मैं भा सकी,


तेरे दर्शन की ही ख़ातिर,

जन्म कितने ले लिए,

लेकिन किसी भी रूप में प्रभु,

ना मुझे तुम मिल सके,


सोचती हूँ मैं कभी,

प्रल्हाद ने ऐसा किया क्या,

या कि राधा और मीरा,

में थी ऐसी बात क्या,


शबरी के वो बेर जूठे,

क्या वो इतने पाक थे,

या सुदामा के वो तंदुल,

मोह के कोई पाश थे,


बांध कर जिससे उन्होंने,

तुमको हृदय में रख लिया,

चाहती हूं प्राप्त कर लूं,

मैं भी ऐसी शक्तियां,


सूरदास जी की तरह मैं,

नेत्र में तुम्हें रख सकूं,

देखू ना संसार को फ़िर,

बस तुम्हीं में रम सकूं,


लोभ ना कोई मुझे,

धन-धान्य या प्रासाद का,

ना ही मैं वर मांगती हूँ ,

अमरता-आल्हाद का,


जो एक झलक तेरी दिखे,

जीवन सफल हो जाएगा,

तेरी शरण में आके ही,

वरदान सब मिल जाएगा।।


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