पिया मिलन की राह..!
पिया मिलन की राह..!
उफ़्फ़्फ़...!
प्रीतम मिलने की चाहत
लिए घर से क्या निकली कि
कितने बैरी खड़े हो गये
तन के प्रिय मिलन के राह में
ये नागिन सी लहराती रात
फन फैलाये डसने को तैयार
उस पर पाँवों की
निगोडी ये पायल
शोर मचाकर मानो सारे राज खोले दे रही हो
ओह..!
ये तड़ित की दहाड़ भी
मिलन के राह को
मुश्किल किये दे रही
कदम हैं कि आगे को बढ़ नहीं रहे
और ये ..
खनखती हुई हाथों की चूड़ियाँ
सबकी निगाहों को
चौकन्ना किए देना चाहती हों
मोरा पिया
इन अड़चनों से अनभिज्ञ
राह तो तकता होगा ना..?
मिलने जाऊँ तो जाऊँ कैसे
पीर हृदय की उसे दिखाऊँ कैसे..?
मिलन की राह के बाधा कैसे बताऊँ..?