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Kanak Agarwal

Tragedy Fantasy

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Kanak Agarwal

Tragedy Fantasy

पिशाच

पिशाच

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जीते जी वो

प्रयासरत था

कोई तो उसकी

सुनवाई हो


दफ्तर में उसकी

फाइल तो आगे हो

घिस घिसकर एड़ियां

वो थक गया था


फांसी पर इक दिन

वो झूल गया था

मरकर भी ना

उसको चैन था


भोलाराम के जीव सा

फाइलों में अटका था

पर कहां किसी पर

इसका कोई असर था


दफ्तर की हर कुर्सी पर

पिशाच जो काबिज़ था !


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