पिंजरे में बंद पक्षी
पिंजरे में बंद पक्षी
पिंजरे में बंद पक्षी, जकड़ा हुआ है गुलामी से
ना उड़ान भर सकता, ना रह सकता आज़ादी से
मन की बात ना कह पाए, ना कोई सुनने वाला
कनक तीलियों के बन्धन में, ना कोई चाहने वाला
बंधा हुआ है आज ये पक्षी, सुतली के धागों जैसा
नचा रहा है इंसान इसको, कठपुतलियों के जैसा
स्वतंत्र होने की कसक यूं, मन में ही रह जाती है
लाख प्रयत्न करने पर भी, समस्या वही रह जाती है
मिलते हैं अन्न के दाने, भरा है नीर कटोरे में
फिर भी उदास है पक्षी, नयन नीर हिलोरे में
उड़ना चाहता है ये पक्षी, नील गगन की छांव में
क्षितिज मिलन की आस लगाए, बेड़ी खोले पांव में
भले धूप में जल जाए या खाए कड़वी निबौरी वो
मगर चाहता है उन्मुक्त होना, झूले फुनगी की ठौरी वो।