STORYMIRROR

Amit Singhal "Aseemit"

Drama Tragedy

4  

Amit Singhal "Aseemit"

Drama Tragedy

पीड़ा का सागर

पीड़ा का सागर

1 min
307

बहुत बड़ा और गहरा है पीड़ा का सागर।

जो छुपा रखा है मैंने अपने मन की गागर।

मुख पर मुस्कान रहे और शान्त हूं दिखता।

मेरे अंतर्मन में घूमता रहता घनघोर बवंडर।


घावों के बड़े बड़े गड्ढे बने हैं इसकी गहराई में।

खुशियाँ डूब गईं हैं इसके भँवरों की गोलाई में।

सुख का एक तिनका भी इसमें डूबकर रहता।

अंतर न करे सुख की कल्पना और सच्चाई में।


लहरें उठती रहतीं इस सागर में इधर से उधर।

तूफ़ान आते रहते, चाहे चला जाऊं मैं जिधर।

पीड़ा का सागर कभी शान्त कहाँ है ठहरता।

समझ न आए, छोड़ आऊं इसको मैं किधर।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama