फ्री का रोमांस
फ्री का रोमांस
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शाम को जब मैं घर आता
तुम रोज़ मिलती थीं तैयार
तुम कहती तो नहीं कभी
घूमने का मन होता बाहर
शादी के बचपन की बात
याद मुझे अब आती प्रिये
घुटने में दर्द मेरे आज है
मलहम ले आना मेरे लिये
रिश्ता हम दोनों का है
एक पुलिंदा यादों का
पैसे कभी न आए बीच
बस पक्के रहे इरादों का
यूं बातों वातों से मैं तो
तुमको बहलाता आया
रोमांस फ्री में हो सकता
दुनिया को बताता आया।