फागुन आयो रे..
फागुन आयो रे..
लेकर लाल गुलाल हाथ में,कनुप्रिया मुस्काई है
टेसू घोलें नटखट कान्हा , ब्रज में धूम मचाई है
गुझिया,पापड़, दही बड़े सब झूम रहे हैं मन ही मन-
सदियां बीतीं पवन सुहानी रंग पर्व ले आई है.
ऐसा रंगीला सा मौसम सबको भायो रे..
फागुन आयो रे...
बगिया में सतरंगी किरणें बिखराता है उदित रवि
बासंती परिवेश सिमटकर मन को करता रसिक कवि
रंग बिरंगे फूल सुहाने सज्जित करते रंगोली-
भान हो रहा ऐसे जैसे भू पर पड़ती धनक-छवि.
मस्ताने कीट पतंगों ने मिल राग सुनायो रे..
फागुन आयो रे...
गालों पर केसरिया आभा, मस्तक पर है चमक सिंदूरी
मल मलकर ही रंग लगाएं मिटा भेदभावों की दूरी
कैसे कैसे पेंग बढ़ाने आया है उल्लास-
कुछ भी कह लो द्वेष-राग मिटकर हो जाएंगे अब नूरी
दसों दिशाओं में उन्मादक जादू छायो रे...
फागुन आयो रे...