"आम का मौसम"
"आम का मौसम"
बौर आ गए आम्र तरु पर-
कोयलिया कुहू कुहू कुहुकी,
स्वाद अनूठे लेकर आई-
हरी-भरी बगिया महकी.
बचपन में देखे थे हमने-
हरे बाग आम के खूब,
गुच्छों में लटके रहते थे-
हमें लुभाते थे अपरूप.
बैलगाड़ी रुकवा कर बाबा-
बाग की सैर कराते थे,
खट्टी अमियां चुन-चुन कर वे-
हमको बहुत खिलाते थे.
आंगन में सूखा करती थी-
कच्चे आमों की फांकें,
बना खटाई अमचूरी हा!
दादी सबको थीं बांटें.
पक्के आम रसीले पीले-
मीठे मधुर स्वाद वाले,
सिंदूरी शरबती दशहरी-
और लंगड़े सब मतवाले.
आम का नाम लुभाए सबको-
फलों का है सचमुच राजा,
आम की फितरत मुझसे कहती-
आजा तू मुझको खाजा.
गूदा, गुठली सब भाते हैं-
होते भाग्यवान के नाम,
सारे जग में लोकप्रिय हैं-
स्वाद से भरे हुए तमाम,
खट्टा मीठा पापड़ हो या-
आम पना शेक, कैंडी,
पूजा हवन भी रहे अधूरा-
मिले न गर पात-डंडी.
हिंदी की अक्षरमाला से
जुड़े हुए हैं इसके तार
ऐसे मधुर रसीले फल को
नमन करूं मैं बारंबार
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