सपनों की उड़ान (मौलिक कविता)
सपनों की उड़ान (मौलिक कविता)
खुले नयन से देखा करती
रंग बिरंगे सपने
पलकों की पांखों से उड़कर
पहुंच जाऊं बचपन में
खुले नयन से देखा करती रंग बिरंगे सपने
सिर पर पोनीटेल बनाकर
पाॅकेट वाली फ्रॉक पहन लूं
गली मोहल्ले में घूमूं फिर
मित्र-मंडली से भी मिल लूं
गुब्बारे वाले को रोकूं
अपने पास बुलाऊं
बजा पीपनी ताली पीटूं
फिरकी खूब घुमाऊं
उड़ती तितली जुगनू पकड़ूं
आंगन में उपवन में
खुले नयन से देखा करती रंग बिरंगे सपने
गुब्बारों में भर लूं खुशियां
भाई बहन का अनुपम प्यार
मम्मी जी की मान मनौवल
पापा की प्यारी पुचकार
निपट उदासी एकाकीपन
भागे जी पल छिन में
खुले नयन से देखा करती रंग बिरंगे सपने
पन्नी वाले लाल रंग का कागज वाला चश्मा
कानों पर लग जाए मेरे होवे कोई करिश्मा
देखूं रंग बिरंगे जीवन की अनमिट पहचान
हरे बांस की बंसी लेकर छेडूं मीठी तान
परदेसी बालक उड़कर जो आ जाएं घर-आंगन में
चहल पहल हो जाए, ढेरों फूल खिलेंगे फिर मन में
खुले नयन से देखा करती रंग बिरंगे सपने
नया जमाना नई उमंगें नए साल की हलचल
दिल में मेरे जगे तमन्ना सुखदायक हो हर कल
बाबा दादी की वो कथा कहानी कोई सुनाए
बागों में झूला डाले और आकर मुझे झुलाए
कोई पराया लगे मुझे ना सब हों मेरे अपने
खुले नयन से देखा करती रंग बिरंगे सपने
संस्कार वाले मेरे बालक यश पाएं भू पर
ज्ञान मान को संग साथ ले श्रद्धा रखें प्रभु पर
गौ माता, कूकर की रोटी, पुनः बनें हर घर में
हिल मिलकर सब रहें जमीं पर, मधुस्मित बसे अधर में
हर बेबस को घर, खाना और वसन मिलें तन ढकने
खुले नयन से देखा करती रंग बिरंगे सपने