मेरे प्यारे भैया
मेरे प्यारे भैया
राखी कहती है तुमसे कुछ, सुन लो मेरे भैया
सुध लेते रहना मेरी, डोले ना जीवन- नैया
बचपन के वो सपन सलोने, देखे थे जो मिलकर
मैं टीचर बन जाऊँ और तुम रौबीले ऑफिसर
पूरे करके दिखा दिये, प्रफुलित थे बाबा-मैया
ओ मेरे चंदा सूरज ओ मेरे किशन कन्हैया
राखी कहती है तुमसे कुछ, सुन लो मेरे भैया
मेरे प्यारे भैया...
बचपन में हम भाई-बहन मिल एक थाली में खाते थे
अपना सारा घी मेरी खिचडी में तुम सरकाते थे
मैं मोटो दीदी तुमको हसरत से देखा करती थी
भूख लगे थी मुझे बहुत, तुमसे ही माँगा करती थी
टॉफी, बिस्कुट और कुल्फी की मैं थी बड़ी खवैया
खाने के थे चोर बडे, मुझको सब देते भैया
गुझिया, पापड, मठरी , लड्डू और चने की लैया
ओ मेरे चंदा सूरज ओ मेरे किशन कन्हैया
राखी कहती है तुमसे कुछ, सुन लो मेरे भैया
राखी के दिन हम सब बहनें मिलकर थाल सजाती थीं
रोली, अक्षत, दीप, रेशमी धागे चुनकर लाती थीं
सुबह रेडियो पर राखी के गीत गूँजते प्यारे
पाखी भी खिड़की पर आकर खुशी ढूँढते सारे
पहन पजामा-कुर्ता भैया होते झट तैयार
हम बहनें भी चटक मटककर दर्शाती थीं प्यार
पूजा की थाली में रखते भैया ढेर रूपैया
ओ मेरे चंदा सूरज ओ मेरे किशन कन्हैया
राखी कहती है तुमसे कुछ, सुन लो मेरे भैया।