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Anup Shah

Tragedy

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Anup Shah

Tragedy

नमक की चमक

नमक की चमक

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नमक नमक

चमक चमक,

नमक की चमक है

या चमक में नमक है।


जलने लगती हैं आँखें

जब देखूँ चहूँ ओर,

खारापन है रौशनी में

अज़ीब है चमक।


शहरों का ज़ायका बदला,

गाँव की मिट्टी को बदला,

छुपा लेता है मुँह अपना

फुटपाथ पर सोता है

मुंदे अपनी पलक।


जलता है ये नमक!


रहने को घर बनाता है

पर अपने बच्चों को

कहाँ छत दे पाता है,

अपनी दीवारें चखोगे तो मिलेगा

उसके पसीने का नमक।


उधार है उसका नमक।


धम धम गरजे मेघ बरसे,

बरसे उसकी आँखें भी।


जिसने शहर बसाया

ख़ूबसूरत बनाया

जीने के लिए सजाया....

उसकी मौत भी 

ढक देती है ये चमक!


नमक नमक

चमक चमक,

नमक की चमक है

या चमक में नमक है।



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