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Anup Shah

Others

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Anup Shah

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बुल्ले शाह को ख़त

बुल्ले शाह को ख़त

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इक ख़त भेजा बुल्ले शाह,

घूम रहा मुल्कों मुल्कों। 


सरहदें रोकती रही हमें,

ख़ुदा मिल गया कैसे तुमको। 


ठिकाना तो सही लिखा था हमने,

भूले हुए अलक़ाब सा बना दिया हमको। 


तस्बीह फेरूं, क़लाम पढूं या पढूं आयतें,

कहाँ मिलता आसानी से सबको। 


कहते हैं दीदार होता है 'नींद' में उसका,

कम्बख़्त नसीब न हुई बीते बरसों। 


इक ख़त भेजा बुल्ले शाह,

घूम रहा मुल्कों मुल्कों। 



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