STORYMIRROR

Anup Shah

Inspirational

3  

Anup Shah

Inspirational

बुल्ले शाह

बुल्ले शाह

1 min
147

इक ख़त भेजा बुल्ले शाह,

घूम रहा मुल्कों मुल्कों। 


सरहदें रोकती रही हमें,

ख़ुदा मिल गया कैसे तुमको। 


ठिकाना तो सही लिखा था हमने,

भूले हुए अलक़ाब सा बना दिया हमको। 


तस्बी फेरूं, क़लाम पढूं या पढूं आयतें,

कहाँ मिलता आसानी से सबको। 


कहते हैं दीदार होता है 'नींद' में उसका,

कम्बख़्त नसीब न हुई बीते बरसों। 


इक ख़त भेजा बुल्ले शाह,

घूम रहा मुल्कों मुल्कों। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational