नजर का पैमाना अमर त्रिपाठी
नजर का पैमाना अमर त्रिपाठी
"नज़र का पैमाना"
मैं हर इंसान को अपनी नजर से तौल लेता हूँ,
भीड़ में छुपे चेहरे की हकीकत को पहचानता हूं,
नजरें कहती हैं मुझसे,क्या ये तुमको पढ़ना आता है,
झूठ और सच का फर्क समझना आता है?
कभी मुस्कान में छल, कभी अश्कों में प्यार,
हर चेहरे की जुबां को पहचानता बार-बार।
रंग-रूप से नहीं, दिल से परखता हूँ,
हर नकाब के पीछे की सच्चाई को जानता हूँ।
जो जैसा है, उसे वैसा ही देखता हूँ,
मैं अमर हूं, हर इंसान को अपनी नजर से तौल लेता हूँ।

