दरिया हूं मैं अमर त्रिपाठी
दरिया हूं मैं अमर त्रिपाठी
सैलाबों से मुझे डर लगता है, दरिया हूं मैं,
समुंदर की गहराइयों से डर लगता है।
हर कदम पर जिंदगी में कोशिश की मैंने,
तुमसे बचने की,
मगर मुकद्दर में मेरे,
हर मोड़ पर तू ही लिखा है,
मैं दरिया हूं, अपनी राह खुद बनाता हूं,
मगर क्या करूं, आखिर में समुद्र तेरी गोदी में सोना लिखा है मुझे,
हर सैलाब, हर तूफान से लड़ता रहा,
पर तेरे आगोश में समाना ही खामोश ही रहा,
ख्वाबों में भी तेरा ही अक्स नजर आता है,
तेरे बिना ये जिंदगी अधूरी सी लगती है।
जब भी आने की कोशिश करता हूं तेरे पास,
डरता हूं तुझसे, कहीं डूब ना जाऊं,
तेरी इस गहराई में सिमट ना जाऊं
आखिर में दरिया हूं दरिया ही रहूंगा
समुद्र तेरी गोद में आते ही खामोश हो जाऊंगा।
रहने दे मुझे खुद से दूर,
लिखने दे मुझे खुद की कहानी,
मैं दरिया हूं तेरे आगोश को देख कर यूं ही मर जाऊंगा।
