नारी
नारी
नारी कोई मूर्ति नहीं
इंसान है
उसे भी भले
बुरे की पहचान है
ये बात अलग है
उसे बोलने की
इजाज़त नहीं
ऐसा नहीं की
वो बोलना नहीं
जानती
बोलने को उसका
मन भी होता है
व्याकुल पर
मन ही मन घुटती
रहती है
अपना सारा गुस्सा
बर्तन कपड़ों पे ही
निकाल देती है
और मन से कितनी भी
दुखी हो
होंठों पे मुस्कान रखती है
