मेरी पहचान
मेरी पहचान


सुबह से शाम तक
शाम से रात तक
बस काम काम
और बस काम
एक पल को भी नहीं आराम
और इसके बाद भी
नही मेरी कोई
पहचान
इतना करने के बाद भी कहा जाता है
की ऐसा करती ही क्या हो
तो में टूटकर बिखर जाता है
और टूट हुआ मन और हिम्मत से भर जाता है
और कदम बढ़ पड़ते हैं
अपने हुनर को
अपनी पहचान बनाने की ओर
अब जिंदगी में ताने नहीं
चुनौती के संग मुस्कुराने को वजह होगी।