नारी उत्पीड़न
नारी उत्पीड़न
अधिकांश नारी त्रस्त उत्पीड़न से,
नारी सुलभ अधिकारों के हनन से।
सड़कों पर भद्दी फब्तियां कसते हैं,
छुटकारा पाना होगा इस प्रचलन से।
औरत के तन को घूरतीं हैं वहशी निगाहें,
घिन्न आती है कुत्सित आचरण से।
मात्र उपभोग की वस्तु नहीं है नारी,
जाकर पूछ लो अपनी माँ बहन से।
वासना पूरित दृगों से ताकते नारी को,
खिलौना समझकर खेलते हैं कोमल तन से।
आह!तन की भूख शांत होगी कि नहीं?
कब तक खिलवाड़ करोगे लाज-वसन से।
बलात्कार का दंश सह रही सदियों से नारी,
बंद होगा यह सब आत्म जागरण से।