आओ इस गणतंत्र दिवस पर मिलके कसम उठाएं हम। आओ इस गणतंत्र दिवस पर मिलके कसम उठाएं हम।
बेचारा इंसान तो शराफत से तरक्की कर रहा है। बेचारा इंसान तो शराफत से तरक्की कर रहा है।
औरत के तन को घूरतीं हैं वहशी निगाहें, घिन्न आती है कुत्सित आचरण से। औरत के तन को घूरतीं हैं वहशी निगाहें, घिन्न आती है कुत्सित आचरण से।
ग़ज़ल को दिया नया आकार, जिसे किया सभी ने स्वीकार। ग़ज़ल को दिया नया आकार, जिसे किया सभी ने स्वीकार।