नारी के कदम
नारी के कदम
नारी जीवन हर कदम एक जंग है।
कभी अपनों से कभी समाज से,
तो कभी खुद के नियमों से त्रस्त है।
जब बढ़ाती है वो कदम कामयाबी की ओर
जकड़ दी जाती है बेड़ियाँ पैरों में रीत, रिवाजों की।
जिन्हें निभाने का जिम्मा है सिर्फ नारी के काँधों पर।
कभी जो कोशिश करती है वो,
अपने पैरों पर खड़े होने की।
खींच ली जाती है जमीं कदमों के नीचे से।
पर फिर भी नारी हर चुनौती मजबूती से पार करती है।
जब न हो कदमों के नीचे जमीं तो,
पूरा आसमां अपना बना लेती है।
आखिर जीतकर हर जंग वो,
जमीं पर अपने कदमों को मजबूती से जमा लेती है।
