नाराज़ हो क्या
नाराज़ हो क्या
बैठे हो गुमसुम नाराज़ हो क्या
ख़ामोशी है छाई उदास हो क्या
बेज़ुबाँ से हैं अल्फ़ाज़ आज मेरे
बेगानी बातों से तुम हताश हो क्या
बेरूख़ी अपनों की हमें हैं तड़पाती
अनचाही यादों से नाख़ुश हो क्या
छोड़ो नाराज़गी करें दिल से बात
साथ होकर हमसे ख़फ़ा हो क्या।।