"ना आवाज मेरी उस दर तक पहुंची"
"ना आवाज मेरी उस दर तक पहुंची"
मैं रोई, सिसकी और तड़पी
ना आवाज़ मेरी उस तक पहुँची
जिस दर का बेसब्री से........
इक अरसे से कर रही थी इंतज़ार
मुझको तमन्ना थी बहुत......
कुछ काम करेगी सिसकियां
ना चीखों में तबदील हुई
वो बेवफ़ा सिसकियां भी मेरी
ना चीखों में तबदील हुई......
आँखों से अश्क बहे ऐसे
जैसे दरिया भर देंगे.....
शायद अश्कों की बारिश से
उसके मन में रिमझिम कर देंगे
ये बहते बेवफ़ा अश्क भी मेरे
उसका मन भी गीला न कर पाएँ......
कितनी हसरत थी मुझको
ये साँसों की खुशबू मेरी
उसके दर तक जा करके.....
शायद उसकी सांसो में घुल मिल जाएगी
ये बेवफा सांसों की खुशबू भी मेरी
उन गलियों तक भी ना पहुंच सकी......
मैं रोई सिसकी और तड़पी
ना आवाज़ मेरी उस दर तक पहुँची.....!!

