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मुसव्विर

मुसव्विर

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मुसव्विर बन बैठा है दिल मेरा,

देख तेरी माहताब जैसी रूखसार को।

आलम इसके ज़हन में यह है कि,

पाना है इसे बस तेरे प्यार को।


तेरी नर्गिस से बदन को,

साहिल की जरूरत भी क्या होगी।

तू आब है, तो फिर

दरकिनार के लिए सहारा क्यूँ लोगी।


अफसाने को मुकम्मल करने की

जरूरत क्या थी तुम्हें,

ये तो हम खुद इल्तिजा कर देते।


कोहिनूर तो चिलमन में भी

अपना रूप दिखाती।

बस एक इशारे पर हम

उसमें भी शब भर देते।


बस उस चिलमन से आई,

एक रूप की रोशनी को देख,

दिल कुछ कह बैठा

अंधेरों में भी।


तेरी हसीन सी चमक पा कर,

यह कुछ बन बैठा।।

हाँ, मुसव्विर बन बैठा है दिल मेरा,

देख तेरी माहताब जैसी रूखसार को।


आलम इसके ज़हन में ये है कि,

पाना है इसे बस तेरे प्यार को।।


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