माँ, मैं अजन्मी ही ठीक हूँ।
तेरी जो चाहत थी,
मुझे इस दुनिया में लाने कि,
तेरी उस चाहत से मैं अब भयभीत हूँ।।
क्योंकि यह दुनिया बहुत बुरी है माँ,
यहाँ के लोग झूठे है,
झूठा है यहाँ का प्यार।
और गलत है इनलोगों के इरादे,
जिसकी वजह से चली गई,
मेरे ख्वाबों कि संसार।।
जानती हो माँ,
मासूम हूँ मैं,
इसिलीए तो वे मुझे लोभ देते है।
फिर उसके बाद,
मेरी मासूमियत से,
अपनी हवस को पूरा कर,
वे मुझे रोग देते है।।
मेरे जिस्म के रूह को,
अपनी हवस के लिए निचोड़ देते है।
और आपकी बगीचे कि नन्ही कली को,
फूल बनने से पहले ही तोड़ देते है।
इसिलीए माँ,
मैं अजन्मी ही ठीक हूँ।
अब तो आपकी बगीचे कि,
मासूम सी कली भी मूर्झा गई।
फूल तो बन ना सकि आपकी बगीचे कि,
लेकिन यह टूट कर मौत के करीब आ गई।।
इसिलीए माँ,
मैं अजन्मी ही ठीक हूँ।
इस दुनिया से बेहतर,
तेरे कोख में सुरक्षित हूँ।।
पता है तुम्हें माँ,
वे दरिंदे मेरे जिस्म में,
एक डर सा पैदा कर दिए।
जिसके वज़ह से,
अब कायनात कि हर एक चीजें भी,
डसने लगी।
यह डर हि है माँ,
जो मुझे इस संसार में आने के बाद मिली।
यही वजह है कि मैं अब,
इस दुनिया में नहीं आना चाहती हूँ।
तेरे कोख में मैं अपनी,
सारी जिंदगी बिताना चाहती हूँ।।
मुझे पता है,
मैं तेरी कोख में,
खुद को महफूज़ महसूस करूँगी।
इस दुनिया के सारे डर को भूल,
एक अच्छी जिंदगी जी सकूँगी।
इसिलीए माँ,
मैं अजन्मी ही ठीक हूँ।