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Himanshu Sharma

Comedy Others

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Himanshu Sharma

Comedy Others

मुझे नेता बना दो

मुझे नेता बना दो

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कोरोना के काल में,

बैठा हुआ जब बोर!

लेटने से तो तंग हुआ,

करें नया क्या और?


देखे पन्ने पलट कर,

पढ़ डाला अख़बार!

बोरियत का ये भूत,

नाच रहा सर पे यार!


कह गए ये बात सही,

बड़े और बुज़ुर्ग सारे!

ख़ाली दिमाग वाला तो,

सिर्फ़ उल्टा ही विचारे!


इसी खालीपन में साहब,

चंद विचार यूँ ही पनपे!

जानिये मेरे दोस्तों इन्होंने,

क्या प्रभाव डाला मन पे!


ऐसे विचारों को रहा मैं,

अपने ह्रदय में, मैं खेता! 

विचार तो क्या विप्लव था,

कि बनना है मुझे भी नेता!


पर ईमानदार हूँ तो इस,

क्षेत्र से मैं तो अनभिज्ञ था!

मैं गया एक नेता के पास,

जो राजनीति का विज्ञ था!


"हे गुरु जी! मुझ बालक को,

समझाइये जाल को बुनना!

तरीक़े समझाएं जिससे आसां,

हो जाए मेरा ये नेता बनना!"


नेता जी मेरी माँग सुनकर के,

एक चिंता को गले लगा बैठे!

जाने अनजाने में ही सही पर,

मुझ को तो वो चिंता बता बैठे!


"बेटे! गर तुम्हें दाँव बता दिए,

तो तुम मगर, मैं वानर होऊंगा!

तुम निकल जाओ शायद आगे,

क्या पता कि तुम को मैं ढोऊंगा!"


समझा मैं उनकी उहापोह को,

करी बहुत सी अनुनय-विनय!

मेरी स्थिति थी ऐसी कि प्रेयसी,

से कर रहा हूँ निवेदन-प्रणय!


देखकर मेरी ये अनुनय-विनय,

वो हो गए गुरु-दीक्षा को राज़ी!

अब बस थे हम दोनों ही वहां,

न थे मियाँ-बीवी न ही था काज़ी!


"वत्स! सबसे पहले तुम्हें होना,

होगा मिथ्यावादन में अभ्यस्त!

झूठ भी ऐसा बोलो कि सत्य भी,

गिरे गश खाकर, होकर पस्त!


दूजा भले ही हो तुम अशिक्षित,

मगर डिग्री नकली बनवा लेना!

कोई भी करे प्रश्न तुमसे तो बस,

डिग्री निकालकर दिखला देना!


तीजे कार्य को पूर्ण करना थोड़ा,

सभी को मुश्किल पड़ जाता है!

क्यूँकि दंगे करवाना कहीं पर भी,

ऐसे आसानी से कहाँ हो पाता है!


जो चौथा कार्य है वो सियासत में,

राजनीति की नींव कहलवाता है!

राजनीति में बड़ा वही नेता होता है,

जो ख़ूब द्रव्य कमाकर लाता है! 

नेता फिर से वही है बड़ा जिसका,

स्विस बैंकों में स्वयं का खाता है!"


पाकर के गुरु जी ज्ञान मैं हो गया,

शान्त-चित्त एवमेव संतुष्ट अनन्य!

इस मन में था आत्मविश्वास मेरे औ',

अभिमान था, मन में पुष्ट अनन्य!


मन में स्वयं से, वादा कर के मैं,

था अग्रसर एक कमरे की ओर!

वहाँ क़ैद किये थे बूढ़े माँ-बाप मेरे,

उन पे चल सकता था मेरा ज़ोर!


सारे पैंतरे मैं उन्हीं पे आजमाता,

और परिणाम गिनता जा रहा हूँ!

भाव शून्य, लालची और क्रूर हुआ,

शायद मैं नेता बनता जा रहा हूँ!


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