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Vaidehi Singh

Tragedy

4.5  

Vaidehi Singh

Tragedy

मुझे जाने बिन

मुझे जाने बिन

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मैं सुंदर नहीं, ये तुमने कैसे जाना? 

मैं तन ढकूँ पूरा, ये मुझे ठुकराने का कैसा बहाना? 

सुंदरता कब से कपड़ों से छिपने लगी, 

आजकल तो बस शरीर देख, भावनाएँ बिकने लगीं।

मुझे जाने बिन, मुझे ठुकरा दिया, 

मेरे ढके तन को कुरूप कह दिया। 


सुंदरता तन की देखी, मन की बुराई मचली, 

कुछ दिन उपभोग किया, फिर मूक जीवित गुड़िया गई कुचली। 

आज एक से आकर्षित, तो कल दूसरी से कुछ बातें, 

मुझ संग नहीं तो ना सही, किसी एक संग

तो पूरा जीवन बिताते। 

मुझे जाने बिन, मेरे प्रेम को वासना कहते हो, 

और स्वयं आकर्षण के विष में बहते हो। 


मैं विश्वास करूँ प्रेम में, जो शरीर के पीछे नहीं पड़ता, 

दूर रहने पर भी वसंत ऋतु में परवान चढ़ता। 

स्वीकार करें मुझे मुझे, बदलने का प्रयास किए बिना, 

बस प्रेम करें, बदले में कुछ पाने की आस किए बिना। 

मुझे जाने बिन भी वह मुझे खोज पाएगा, 

और आकर्षण को प्रेम समझने वालों को, दोनों में अन्तर दिखाएगा। 


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