मोहब्बत रहे पाक
मोहब्बत रहे पाक
कहीं बदनाम हो न जाये मोहब्बत अपनी,
सहरा में फूल दिल का खिलाना पड़ा मुझे।
कितनी अजीब बात है अपने ही प्यार को,
उनसे व दुनिया से बारहा छुपाना पड़ा मुझे।
आँखों की नींद दिल का सुकूं सौंप के उन्हें,
इंसानियत का मोल चुकाना पड़ा मुझे।
रौशन रहे जहान ये सूरज बगैर भी,
जुगनू तमाम रात , जलाना पड़ा मुझे।
सोये पड़े हैं चैन से घोड़े जो बेंच कर,
उनका जमीर दोस्त जगाना पड़ा मुझे।
इसके सिवाय दोस्त कोई रास्ता न था,
मामा गधे को अपना बनाना पड़ा मुझे।
जिनको गुमान था कि बड़े पाक-साफ़ हैं,
दर्पण उन्हीं को आखिर दिखाना पड़ा मुझे।