बाल मजदूर
बाल मजदूर


कितने बेदर्द माँ बाप होते
छोटी सी जान को मजदूरी कराते
अपनी पेट पालने की खातिर
नाजुक हाथों से ईंट ढुलवाते
बेरहमी की हद हो गई
इतने पर भी बाज ना आते
कभी किसी होटल में इनको
कभी फैक्ट्री में पहुंचाते
इनकी सारी पगार ले जा कर
खा पी कर शराब में उड़ाते
बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं
ना इन्हे कभी विद्यालय ले जाते
कुछ बच्चे को मजदूरी ना रखते
तो उनको खेतों में हल चलवाते
कभी धान की रोपनी तो कभी
आम के बगीचे की रखवाली कराते
खेल कूद के दिन जब इनके
भारी भरकम वजन उठवाते
मालिक जब जब मारे इनको
माँ बाप की तब याद है आते
रुखा सूखा खाना खा कर
फिर भी ये चुपचाप सो जाते!