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Kanchan Prabha

Tragedy

4.7  

Kanchan Prabha

Tragedy

बाल मजदूर

बाल मजदूर

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330


कितने बेदर्द माँ बाप होते

छोटी सी जान को मजदूरी कराते

अपनी पेट पालने की खातिर

नाजुक हाथों से ईंट ढुलवाते

बेरहमी की हद हो गई

इतने पर भी बाज ना आते

कभी किसी होटल में इनको

कभी फैक्ट्री में पहुंचाते

इनकी सारी पगार ले जा कर 

खा पी कर शराब में उड़ाते 

बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं 

ना इन्हे कभी विद्यालय ले जाते

कुछ बच्चे को मजदूरी ना रखते

तो उनको खेतों में हल चलवाते

कभी धान की रोपनी तो कभी

आम के बगीचे की रखवाली कराते

खेल कूद के दिन जब इनके

भारी भरकम वजन उठवाते

मालिक जब जब मारे इनको

माँ बाप की तब याद है आते

रुखा सूखा खाना खा कर 

फिर भी ये चुपचाप सो जाते!



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