STORYMIRROR

Abhay kumar Singh

Tragedy

4  

Abhay kumar Singh

Tragedy

मेरा हक

मेरा हक

1 min
256

समय ने लूटा

सरताज़ ने लूटा

तुम भी लूट डालो

खैरियत अब नाहीं पुछो

हमें कूट डालो,


हमारी हैसियत ही क्या

जो हम तुमसे पूछेंगें

मुखौटों के जो आगे

रीत हमारी

नीवं लूट डालों, 


अब तो मांस भी अब 

साल में बदलने लगे हैं, 

भरोसा जो भी था खुद पर

वो मसलने लगे हैं, 


जहाँ तक सोच थी मेरी

जहाँ तक स्वप्न था मेरा

कुछ लोग हैं जो 

मिलकर अब बदलने लगे हैं, 


ये अखबार भी झूठा

इतबार भी झूठा 

इश्तिहार क्या करना

अम्बार है झूठा, 


मेरी कैफियत को पूछकर

पैगाम क्या दिया, 

मेरी हैसियत को देखकर 

अंजाम दे दिया.. 


मेरे स्वप्न को

मेरी सोच को

मेरे हक को छीना है

छीन के मेरी आरज़ू

महरूम बना दिया...! 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy