मिलन
मिलन
नदी है एक व्याकुल प्रेयसी
जिसका प्रियतम समुंदर है
मिलन का रास्ता है दुर्गम
बड़ी लंबी और कठिन डगर है
ऊँचे पर्वतों के बीच से खुद
यह अपना रास्ता बनाती
मार्ग में आती बाधाओं से
तनिक भी यह न घबराती
हज़ारों मील की दूरी यह
हँसकर है पार कर लेती
पत्थर इसको कहीं जो रोके
धार से उनको है घिस देती
प्रियतम से मिलने का जोश
इसको अनोखा वेग देता है
बल खाती षोडशी सी इठलाती
सँदेसा दूत बन मेघ देता है
सघन झुरमुट के बीच में छिप
करती है अपना शृंगार
अंतस में लेकर चली है
मिठास का एक अनुपम उपहार
रात्रि के निस्तब्ध मौन में
मुखरित हुआ इसका नर्तन
सहचर से मिलने को आतुर
नई नवेली अल्हड़ दुल्हन
वृक्ष रूपी इसकी ओढ़नी खींच
दरिंदों ने किया चीरहरण
विहंस रहा, कर आँचल मैला
दानव जैसा क्रूर प्रदूषण
अपनी प्रेयसी के स्वागत में
समुद्र पंथ निहारे बाँह पसार
ज्ञात नहीं उसको प्रेयसी पर
हुआ है कैसा कठोर प्रहार
शिथिल, पस्त सूखी कुम्हलाई
अंतस की मिठास कड़वाई
खोई उमंग पिय मिलन की
विवश हुई वेदना गहराई
काश हमें विचलित कर पाता
इस बाला का दारुण क्रंदन
करती यही गुजारिश सबसे
न लूटो इसका चिर यौवन
आओ करें संकल्प सभी
नदी की अस्मिता बचानी है
प्रदूषण के दानव से मुक्तकर
तरु की चुनरी इसे दिलानी है !