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इंदर भोले नाथ

Tragedy

4  

इंदर भोले नाथ

Tragedy

महावीर सूत पुत कर्ण

महावीर सूत पुत कर्ण

2 mins
156


सूत पुत संबोधित कर मुझे तिल तिल कर मारा गया

मैं वो अभागा कर्ण हूँ, जिसे हर बार दुतकारा गया -2


शौर्य अगर परखा जाता फिर कहाँ पार्थ सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होता

भरी सभा मे विद्वानों द्वारा न मैं दुत्कार का पात्र अगर होता


मिला होता अवसर यदि हमको नष्ट पार्थ का गुरुर कर देता

सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का भरम मैं पल भर मे चूर कर देता


पांडवों पर ही दिनमान रहे क्यों मेरे लिये तुम हुए भगवान नहीं

क्यों मौन रहे मेरे अपमान पे बोलो हे मुरलीधर क्या मैं इंसान नहीं


साथ न देता दुर्योधन का मैं,कभी,महाभारत नहीं करता,अगर

भरी सभा मे सखा मान सर पे अंगराज का मुकुट नहीं धरता


हर बार नीच अधम कहकर शब्दों का बाण हृदय मे उतारा गया

हाँ मैं वो अभागा कर्ण हूँ जिसे हर बार दुतकारा गया -2


सोचो कितना अछुत था मैं जो माँ ने भी मुझको त्याग दिया

ममता की देवी भी निष्ठुर बन मुझे सूत पुत का दाग दिया 


इतनी नफ़रत इतना घृणा बोलो क्यूँ मुझको ही सरकार मिला

तुम्हे भी तो माँ यशोदा ने पाला फिर तुम्हे क्यूँ नहीं दुत्कार मिला


एक पुत्र के लिए दूजे पुत्र का प्राण मांगती है क्या

बोलो हे कन्हैया कोई माँ ये हद्द भी लाँघती है क्या


एक सखा दुर्योधन को छोड़ सभी ने मुझ से छल किया

कवच और कुंडल माँगकर था इंद्र ने मुझको निर्बल किया


पग-पग पर अभिशाप मिला किस्मत से भी मात मिला

सुर्यदेव भी पड़े पार्थ मोह मे,पिता का भी नहीं साथ मिला


बस अपनों के ही हाथों सदैव सर्वस्व उजाड़ा गया, हाँ

मैं वो अभागा कर्ण हूँ जिसे हर बार दुतकारा गया -2

 

नारी को दाव पे रख कर तनिक भी नहीं संताप किया

हमने मित्रता का लाज रखा तो कौन सा पाप किया


जुए मे हार गया पत्नी को वो मर्द भी तो लोभी था

फिर बोलो हे मुरलीधर क्या केवल दुर्योधन ही दोषी था


छल से पितामह को मारा शिखण्डी को रण मे खड़ा करके

जयद्रथ को भी तुमने भर्माया सूर्य को मेघ मे छिपा करके


बोलो तुम्हारी छलता का मैं और कितने प्रमाण गिनाउँ

रण मे मुझे विवश किया घटोत्कच पे अमोघ बान चालउँ

 

था जीत ने भी मातम किया जब मैं छल से हारा गया

हाँ मैं वो अभागा कर्ण हूँ जिसे हर बार दुतकारा गया -2


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