इंदर भोले नाथ

Classics

5.0  

इंदर भोले नाथ

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यादों के पन्ने से…..

यादों के पन्ने से…..

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हर शाम

नई सुबह का इंतजार

हर सुबह

वो ममता का दुलार।


ना ख्वाहिश, ना आरज़ू

ना किसी आस पे

ज़िंदगी गुजरती थी।


हर बात

पे वो जिद अपनी

मिलने की

वो उम्मीद अपनी।


था वक़्त हमारी मुठ्ठी में

मर्ज़ी के बादशाह थे हम

थें लड़ते भी, थें रूठते भी

फिर भी बे-गुनाह थे हम।


वो सादगी कहीं खो गई

शराफ़त ने चोला ओढ़ ली

कुछ यूँ

रफ़्तार ज़िंदगी ने ली

मर्ज़ी ने दम तोड़ दी।


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