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राजेश "बनारसी बाबू"

Romance Action Fantasy

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राजेश "बनारसी बाबू"

Romance Action Fantasy

मेरी पहली कविता और कशिश तुम

मेरी पहली कविता और कशिश तुम

2 mins
433


********************************************आज मोहब्बत की गली में फिर खुद को तन्हा पाया 

आज मैं तेरे प्यार में जैसे खुद को मरता पाया 



मोहब्बत क्या है फिक्रमंदी मक्कारी या खुद को कचोटना या खुद से नाराज़ रहना 

मोहब्बत क्या है धोखा या बेबसी या खुद की गई सबसे बड़ी गलती


 

आज बारिश के बीच आज मैं खुद को भींगता पाया 

आज मैं बारिश से खुद को महफूज करता भागता पाया


आज फिर से मैं लाचारी से दौड़ता नजर आया 

तभी सामने एक जाली वाला मकान नजर आया

जिसमें मैं खुद को थकान मिटाता नजर आया 


 

तभी बारिश की धुंध में एक जाना पहचाना चेहरा नजर आया 

गौर से देखा तो बालकनी में कशिश का चेहरा नजर आया



जैसे ही मैंने नजरे कशिश से मिलाया था 

उसने पलके झुका खुद को बेहद आहत होता हुआ पाया था


जैसे ही नजरे मिली अंदर घर में आओ ऐसा उसने मुझे बुलाया था

उसकी फकत और मासूमियत चेहरे पे आज मुझे बहुत ज्यादा तड़प आया था


उसकी झुकी नजरे कमरे में बड़ा खालिश सा मैंने पाया था

मैंने उसकी चुप्पी तोड़ते हुए उसे अपनी ओर घूरता हुआ पाया था



पहले से तू इतनी हसीन थी या खुदा ने किया कोई हसीन सितम ऐसा मैंने उसे बताया था

उसने मुझे प्यार से झप्पी देते हुए हौले से मुस्कुराया था

उसने फिर कसके जकड़ मुझे प्यार से गले लगाया था



यह कैसा बियर्ड बढ़ा लिया तूने कैसा अपना हुलिया बनाया था?

फिर मैंने उसे अपने सीने से चिपके खुद से रोता हुआ पाया था


आज मैंने खुद को वक्त की उदासी मे खुद को बड़ा लाचार रोता हुआ पाया था 

उसने फिर मेरे जेब से 10 रूप निकाल कैसे मुझे चिढ़ाया था


अब तो जा कमा नौकरी कर ऐसा मुझे बताया था।

मैंने उसे एक ही टक अपनी ओर निढाल देखता हुआ पाया था



अब शिकायती नजरों से मुझे ना देखो

अब ऐसे अनदेखा मुझको ना करो


पापा के कसम की खातिर मैंने किसी और से शादी करने का कदम उठाया था

मैंने शादी के दिन तेरे लिए खूब तड़पता हुआ खुद को रोता हुआ पाया था


अब तो यही इरादा है बस तुमको ऐसे ही मुस्कुराते देखते पाना है

तुम्हारे खूबसूरत जुल्फों को देख कल्पना में खो जाना है



तुम ऐसे ही सोए रहो मैं यूं ही चुपचाप तुम्हें देखता रहूं

तुम्हें एक पल ऐसे ही बांहों मे भरा रहूं



अब खुद को संभालो भले हम प्यार नहीं 

लेकिन कौन कहता है हम यार नहीं



बात जब भी आए कभी मेरी तो हमें भुला देना

अपनी कोई छोटी सी वजह ऐसा वजह बता देना 

मेरी बाते कहानी किस्सों को धूल में उड़ा देना



आज मेरा कदम भारी भारी सा नजर आया है

जैसे लगता आज मेरे जिस्म से जान निकल आया है


जान ढाई अक्षर प्यार के होते है 

शायद इसलिए हमारे सपने अधूरे होते है


मैं अब अपनी पहली कविता खत्म करता हूँ

मैं अपनी पहली कविता तुझे डेडिकेट करता हूँ

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राजेश बनारसी बाबू

उत्तर प्रदेश वाराणसी

स्वरचित रचना

Instragram id- rajsingh4115

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