STORYMIRROR

विवेक यशस्वी

Drama Tragedy Fantasy

3  

विवेक यशस्वी

Drama Tragedy Fantasy

मेरी हसरत

मेरी हसरत

1 min
89

क्या कहें

इस आरजू का

जो ममता में रहकर

शहरों में जिंदा रखती है।

सोचा था गांव जाऊँगा

दोस्तों संग खेल पेड़ों पर

खेल बापू से डांट खाऊंगा

नाराज़ हो के अंधेरों में 

पेड़ो पे छुप जाऊँगा

मां पुकारेगी कसमें दिलाएगी

उसे परेशान देख घर आऊंगा


पर पता चला लॉक डाउन हो गया है

अकेले खाते पीते चला हजारों किलोमीटर 

सड़को पे ठहरा थक हार कर

न जाने उस दिन सुबह न हुई

पेपर में हमारे कपड़ों में लिपटी

एक लाश थी

मेरी हसरत अब अब लाश हो गई।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama