मेरी हसरत
मेरी हसरत
क्या कहें
इस आरजू का
जो ममता में रहकर
शहरों में जिंदा रखती है।
सोचा था गांव जाऊँगा
दोस्तों संग खेल पेड़ों पर
खेल बापू से डांट खाऊंगा
नाराज़ हो के अंधेरों में
पेड़ो पे छुप जाऊँगा
मां पुकारेगी कसमें दिलाएगी
उसे परेशान देख घर आऊंगा
पर पता चला लॉक डाउन हो गया है
अकेले खाते पीते चला हजारों किलोमीटर
सड़को पे ठहरा थक हार कर
न जाने उस दिन सुबह न हुई
पेपर में हमारे कपड़ों में लिपटी
एक लाश थी
मेरी हसरत अब अब लाश हो गई।