मेरे घर की स्त्री
मेरे घर की स्त्री
पांच बहुओं में से वो बीच की थी
पांच ही पढ़ी पर खूब समझदार थी
बड़ी बहुएं जलती थी तारीफ से उसकी
ननद भी कोई कसर नहीं छोड़ती थी।
सास भी ननद की सुनती बेटी जो थी वो
जाती रोज अकेले काम की खेती थी वो
पति के सम्मान में कभी ज़िद न की
घास के बिछौने पर ही सोती थी वो।
घर और चार बच्चे साथ संभाले थे
पढ़ाती उन्हें भी जो अक्षर के काले थे
वाह वाही लूटी थी पूरा गांव था सहेली
छोड़ कर चले गए थे इसलिए उसे अकेली।
संभाल लिया फिर भी घर उसने सारा
घर नहीं बन चुका है अब वो स्वर्ग प्यारा
इसलिए आज भी बड़े नफरत बिछाएं है
कैसे इसने बिन मदद से सपने सजाए हैं।
