मेरा रंग
मेरा रंग


अपने ही रंगों को अक्सर भूल जाता हूँ
मैं बैरंग नहीं रंगों का बिगुल बजाता हूँ।
मुझे होली पे चितकबरा अच्छा लगता है,
बैसाखी का लाल चेहरा अच्छा लगता है।
लगता है अच्छा मुझे ईद का गुलाबीपन
रंग-बिरंगा सांता मुझे अच्छा लगता है।
हरा-भगवा-पीला-लाल-सफ़ेद
रंगों के भार से मैं भारत कहलाता हूँ।
मुझे शांत कर देता है स्वर ॐ का
वाणी शबद सनातन है मेरी कौम का।
प्रेयर चर्च की है मेरी आत्मा की प्रेयसी
अजान से खिलता है दिल रोम-रोम का।
उस एक को जान लिया है जबसे,
कबीर के भजनों में मैं तुलसी पाता हूँ।