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Renu Sahu

Romance Fantasy Inspirational

4  

Renu Sahu

Romance Fantasy Inspirational

मैं चाहती हूँ.....

मैं चाहती हूँ.....

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उन्मुक्त गगन सा आजाद हो,

मैं हँसना चाहती हूँ।

खुली अदृश्य बेड़ियाँ,

अब उड़ना चाहती हूँ।

नीले आकाश क्षितिज के पार,

जाना, नहीं चाहत मेरी,

धरती पे जहाँ पाँव,

बस वहीं झूम ना चाहती हूँ।। खुली..।।

खुद के बिखरने के डर से निकल,

बाँध लिया खुद को फिर से।

कर जवां मेरी चंचलता,

बस महकना चाहती हूँ।। खुली।।

नहीं देखूँ दिल के अंदर,

काली अंधियारी रातों के पहरे।

लोहि की किरण हो मुझसे,

उसे जगाना चाहती हूँ।। खुली..।। 

उन हाथों को कसकर थामूँ,

जिसने भरी ऊर्जा मुझ में।

उन कंधों के सजदे,

कुर्बान हो जाना चाहती हूं।। खुली..।। 

ना करती थी इबादत,

अब जुड़ते हाथ है प्रार्थना को।

माँगना अब क्या, 

सब कुछ तो उसने दे दिया।

बरसे आशीष, दुआओं के रज,

सहर्ष झुकना चाहती हूँ।। खुली..।। 

फिर लुभाती प्रकृति मुझे,

हवा सहेली बन गई।

इनमें खोकर, इनकी स्याही बना,

फिर लिखना चहती हूँ।। खुली..।।

गदगद होता देख मन,

साथ कितने है खड़े।

दूर से आलिंगन का रस,

दर्द सारे हुए परे।

ताउम्र बस इस प्यार में,

तैर जाना चाहती हूँ।। खुली..।।

एहसास मेरे होने का,

मेरे वजूद को मुझ में खोने का।

फैला बांहें जब देखूँ ऊपर,

बस मुझ में, हाँ मुझ में, इस जहाँ के होने का।

बेफिक्री पुरानी.. नहीं नहीं

बेफिक्री, बेपरवाह, नई,

खुद को पाना चहती हूँ।

किसी और को नहीं बस,

खुद को चाहना चहती हूँ। 

खुली अदृश्य बेड़ियाँ,

मैं उड़ना चाहती हूँ।

बस अब उड़ना चाहती हूँ।।



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