मासूमियत
मासूमियत
मासूमियत का लिबास ओढ़े,
एक मासूम - सा चेहरा था,
फटी - सी कमीज़ थी,
आँखों में तेज था।
बड़ी ही मासूमियत से देख रहा था मुझे,
जाने क्या नज़रों से पढ़ रहा था,
आँखों ने उसकी मुझे घेर लिया,
इस तरह कि शरीर स्थिर हो गया।
कुछ कह पाती मैं उससे,
कि तभी पास वो आया मेरे,
कहने लगा,
"दीदी हमको भी ऐसा ही बस्ता दिला दीजिये,
हमें भी स्कूल पढ़ने जाना है।"
आँखों में उसकी वो हया देख,
मेरी आँखें नम हो गईं,
कि जिस दुनिया से भाग रही थी मैं,
उसकी दुनिया वहीं सिमट - सी गई।
न जाने ऐसे कितने किस्से पल रहे दुनिया में,
ख्वाब जिनके आसमान हैं,
और हम मगरूर हो पढ़ रहे किताबें,
ज़मी पर जिसको गुमान है।।