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मानवता

मानवता

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हृदय की पीडा है, जिसमे सेवा का एहसास है।

दर्द को हरदम दूर हटाती, मन की ऊजली आस है

नेकी का पैगाम घना है, नैतिकता का दास है

मानव में मानवता होना, मानव का विश्वास है।


इज्जत व सत्कार से, शोभित इच्छा को बतलाता है।

हसरत व हर हॅंसी खुशी में, मानवता का ताता है।

दुर्जनता जब बढ जाती है, दोषी कदम बढाता है।

मानवता तब उग्र भी होती, मानव अस्त्र घुमाता है।


सौम्य रहे व शांत करे, इतना ही काम नहीं होता

रक्षा में जब कोई नहीं, उससे आराम नहीं होता

भिड जाता है दुष्टों से, कोई आवाम नहीं होता

हिम्मत इतना देता है, कि दूर मुकाम नहीं होता


सबको वो समान मानता, मन को वो महकाता है।

दिलदारी का मान है करता, दिल में रोज समाता है।

मुस्काने इससे बढती है, कष्ट-तपन मिट जाता है

एक पुण्य का नाम नहीं वो, लाख दुआएं पाता है।


क्षमता से कमजोर नहीं, होता है कोई जीवन में

सबके अंदर सिंचित शक्ति, ढूॅंढ रहा है वो मन में

बेबस व लाचारो का, वो एक मसीहा होता है।

कर्म में सबका साथ बढाता, बाॅंट रहा सुख जन जन में।


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